Monday, December 9, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

प्रोफ़ेसर रिज़वान अली को लगता है कि मुसलमानों ने अपना नुक़सान धर्म को ज़्यादा प्रमुखता देकर भी किया है. वो कहते हैं, "मुसलमान केंद्र में धर्म को रखते हैं. जब तक ये धर्म से अलग कर राजनीति नहीं करेंगे तब तक अधिकार नहीं मिलेगा. इन्हें ख़ुद को धर्म से डिस्लोकेट करना होगा. यहाँ आदिवासी भी मुसलमान बने हैं लेकिन मुसलमान बनकर ये आदिवासी नहीं रहते."
"मस्जिद में जाकर बाक़ी के मुसलमानों की तरह हो जाते हैं. जो आदिवासी ईसाई बनते हैं वो अपनी जड़ो से उस तरह से नहीं कटते जैसे ये मुसलमान बनने के बाद कटते हैं. ईसाई आदिवासी अपना टाइटल तिर्की, मुंडा और मरांडी नहीं छोड़ते हैं जबकि मुसलमान बनने के बाद ये छोड़ देते हैं और इसका नुक़सान उन्हें उठाना पड़ता है. यह मुस्लिम समाज की एक विडंबना भी है. मुसलमान बनने के बाद इनका संस्कृतीकरण होता है."
इस बार झारखंड में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी 14 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे हैं. ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का निशाना यहाँ की मुस्लिम आबादी है. प्रोफ़ेसर रिज़वान को लगता है कि ओवैसी के कारण झारखंड के मुसलमानों में उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा बढ़ेगी और इससे यहाँ के मुसलमानों को ही परेशानी होगी.
रिज़वान कहते हैं, "मुस्लिम लड़के मोटरसाइकिलों में अपने पैसे से तेल भरवाकर ओवैसी को सुनने जा रहे हैं. धर्म के आधार पर मुसलमान गोलबंद होकर अपना अधिकार नहीं पा सकते. ओवैसी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं."
"ओवैसी के कारण मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ेगा, घट ज़रूर सकता है. मुस्लिम लीडरशीप एक सांप्रदायिक सोच है. इस सोच पर मुसलमान प्रतिनिधित्व हासिल नहीं कर सकते हैं."
झारखंड में एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हुबान मलिक कहते हैं कि हर पार्टी ने झारखंड में मुसलमानों की उपेक्षा की है इसलिए ख़ालीपन को भरने के लिए दस्तक ज़रूरी थी.
वो कहते हैं, "मुसलमानों का वोट कोई बिरयानी नहीं है कि बाँट कर खा लो. हम तो पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. अगर हमलोग की वजह से बीजेपी को फ़ायदा मिलेगा तो पहले किससे फ़ायदा मिलता था?"
झारखंड में मुसलमानों के प्रतिनिधत्व के सवाल पर राँची से प्रकाशित होने वाला उर्दू दैनिक रोज़नामा अलहयात के संपादक मोहम्मद रहमतुल्लाह कहते हैं, ''झारखंड पाँच कमिश्नरी में बँटा हुआ है और सबके अपने मसले हैं. दक्षिणी छोटानागपुर में क़रीब 20 लाख मुस्लिम आबादी है."
"हैरान करने वाली बात ये लोहरदग्गा में जहां 23 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है, गुमला में 13 फ़ीसदी, शिमडेगा में आठ फ़ीसदी, खूँटी में छह फ़ीसदी और राँची में 20 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है. लेकिन यहाँ की सीटें आदिवासियों और अनुसूचित जातियों के लिए रिज़र्व हैं. इनमें केवल राँची और हटिया ही रिज़र्व सीट नहीं है."
"दक्षिणी छोटानागपुर में 20 लाख मुस्लिम आबादी आज़ादी के बाद से ही बहरी और गूँगी है. इनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है. आज तक उनकी आवाज़ कोई नहीं बन पाया. वो आज तक मेयर नहीं बन पाए. झारखंड बनने के बाद से महज़ तीन मंत्री बने लेकिन उनसे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ. मुसलमानों में आत्ममंथन का दौर चल रहा है इसीलिए ओवैसी घुसने में कामयाब रहे हैं."
झारखंड में मुसलमानों के बीच ओवैसी की मौजूदगी बढ़ रही है. राँची के हरमू में एक मुस्लिम महिला से पूछा कि झारखंड के मुख्यमंत्री कौन हैं तो उनका जवाब था ओवौसी साहब.
उनसे पूछा कि ओवैसी का नाम कहां सुना, तो उन्होंने कहा, "घर में टीवी और मोबाइल पर उनका भाषण सुनती हूँ."
इस बार कांग्रेस और जेएमएम ने तीन और बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
बाबूलाल मरांडी से पूछा कि अगर वो अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी में होते तब भी छह मुसलमान प्रत्याशी उतारते?
इस सवाल के जवाब में मरांडी ने मुस्कुराते हुए कहा, "इसीलिए तो बीजेपी को छोड़ अलग पार्टी बनाई. ज़ाहिर सी बात है नहीं दे पाता. इन्हें दूसरे मज़हब के लोगों से डर लगता है. अरे आपका धर्म इतना कमज़ोर है? डरते क्यों हो भाई?"